Bhagwat Geeta Updesh
भगवद गीता
हिन्दू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन, धर्म और कर्म का अमूल्य ज्ञान दिया। यह उपदेश केवल अर्जुन के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए मार्गदर्शक है।
कर्म का महत्व
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य का केवल कर्म करने में अधिकार है, लेकिन फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। हमें निष्काम भाव से अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।
आत्मा अमर है
न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। यह अजर, अमर और अविनाशी है। केवल शरीर बदलता है, आत्मा शाश्वत रहती है।
मन की स्थिरता
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सफलता और असफलता की चिंता किए बिना, मन को स्थिर रखते हुए कर्म करने से ही सच्चा सुख प्राप्त होता है।
श्रद्धा और भक्ति का महत्व
यो मे भक्तः स मे प्रियः।
जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान का स्मरण करता है, वह परम शांति और मोक्ष प्राप्त करता है।
गुणों के प्रभाव
सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत।
सत्त्वगुण शांति और ज्ञान की ओर ले जाता है, रजोगुण कर्म और भौतिक सुखों की ओर, जबकि तमोगुण अज्ञान और आलस्य को बढ़ावा देता है।
समत्व भाव
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते।
जो व्यक्ति सुख और दुख में समान रहता है, वही मोक्ष का अधिकारी बनता है।
भगवद गीता केवल धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाली अमूल्य शिक्षा है। श्रीकृष्ण का उपदेश हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यदि हम गीता के सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाएँ, तो हर समस्या का समाधान मिल सकता है।
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