Yogini Ekadashi 2025

Yogini ekadashi vrat ki katha in hindi – जानिए इस व्रत की रहस्यमयी पौराणिक कथा और महत्व

Yogini Ekadashi 2025 हर एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व होता है, लेकिन योगिनी एकादशी को पाप नाशिनी और […]

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क्या यह संसार मात्र एक रात्रि की तरह क्षणिक है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 69 या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी |यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने: ||

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इन्द्रियों को वश में करने से बुद्धि की स्थिरता कैसे प्राप्त होती है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 68 तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वश: |इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 68 || अतः हे श्रेष्ठ! जिस

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 67

क्या असंयमित इंद्रियाँ हमारी बुद्धि को भटका देती हैं?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 67 इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते |तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि || 67 || अर्थात भगवान् कहते

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bhagavad Gita Chapter 2 Verse 66

क्या अशांत मन वाला व्यक्ति सच्चा सुख पा सकता है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 66 नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना |न चाभावयत: शान्तिरशान्तस्य कुत: सुखम् || 66 || अर्थात

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 64 65

क्या राग-द्वेष से मुक्ति ही सच्चा सुख है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 64 65 रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् |आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति || 64 ||प्रसादे सर्वदु:खानां हानिरस्योपजायते |प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धि: पर्यवतिष्ठते

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 62 63

क्या हमारे क्रोध का कारण हमारी इच्छाएँ हैं?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 62 63 ध्यायतो विषयान्पुंस: सङ्गस्तेषूपजायते |सङ्गात्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते || 62 ||क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम: |स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 61

इंद्रियों को वश में करने का सही तरीका क्या है? गीता का दृष्टिकोण!

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 61 तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्पर: |वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 61

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 58 59 60

क्या साधक वास्तव में ‘इच्छा रहित’ हो सकता है? गीता क्या कहती है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 58 59 60 यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वश: |इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 58 ||विषया विनिवर्तन्ते

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 57

क्या हमारे सुख-दुख की प्रतिक्रियाएं हमें अस्थिर बनाती हैं? गीता से जानें समाधान

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 57 य: सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम् |नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 57 || अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 56

क्या आप दुःख में भी शांत रह सकते हैं? गीता बताती है कैसे!

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 56 दु:खेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह: |वीतरागभयक्रोध: स्थितधीर्मुनिरुच्यते || 56 || अर्थात श्री भगवान बोले, ध्यान करने

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 55

क्या इच्छाओं का त्याग ही स्थिर बुद्धि की पहचान है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 55 श्रीभगवानुवाच |प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् |आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते || 55 || अर्थात श्री भगवान

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