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Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 20
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वज: |
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डव: ||20||
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते |
Bhagavad Geeta Chapter 1 Shloka 20 Meaning
अर्थात संजय कहते हैं, हे महिपति धृतराष्ट्र! अब जब शस्त्रों चलाने की तैयारी हो रही थी, उस समय अन्याय पूर्वक राज्य को धारण करने वाले, राजा और उनके साथदारो को व्यवस्थित रीत से सामने खड़े हुए देख, कपिध्वज पांडु पुत्र अर्जुन ने अपना गांडीव धनुष उठाया और यह वचन कहे।

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 20 Meaning in hindi
अथ : इस पद का तात्पर्य यह है कि अब संजय भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद रूप भगवत गीता का आरंभ करते हैं।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते : वैसे तो पितामह भीष्म ने युद्ध के आरंभ की घोषणा करने के लिए शंख नहीं बचाया था। परंतु केवल दुर्योधन को खुश करने के लिए ही शंख बजाया था। फिर भी कौरवों और पांडवों की सेना ने उसे युद्ध के आरंभ की घोषणा ही मान लिया। और अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र हाथ में उठाvकर तैयार हो गए! इस तरह सेना को शस्त्रों उठते देख, वीरता में आकर अर्जुन ने भी अपना गांडीव धनुष हाथ में उठा लिया।
व्यवस्थितान् धार्तराष्ट्रान् दृष्टवा: इस पदों से संजय का कहने का तात्पर्य है कि, जब आपके पुत्र दुर्योधन ने पांडवों की सेना को देखा था, तब वह दौड़ते दौड़ते द्रोणाचार्य के पास गया। परंतु जब अर्जुन ने कौरव की सेना को देखा, तब उसका हाथ सीधा गांडीव धनुष ऊपर ही गया(धनुरुद्यम्य)। इससे यह पता चलता है कि, दुर्योधन के अंतर में भय है। और अर्जुन के हृदय में निर्भयता है, उत्साह है, तथा वीरता है।
कपिध्वज : अर्जुन के लिए कपिध्वज विशेषण दे कर संजय धृतराष्ट्र को अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराज हुए हनुमान जी का स्मरण कराते हैं। जब पांडवों वन में रहते थे, तब एक दिन वायु देव ने अकस्मात से एक दिव्य हजार पंखुड़ियां वाले कमल लाकर द्रोपदी के आगे डाल दिया। उसे देखकर द्रौपदी बहुत ही प्रसन्न हो गई! और उसने भीमसेन को कहा कि, हे पराक्रमियों में श्रेष्ठ, आप ऐसे बहुत ही सारे कमल ला दो। द्रोपदी की इच्छा पूर्ण करने के लिए भीमसेन वहां से निकल गए। जब वह कदलीवन में पहुंचे तब वहां उनका मिलाप हनुमान जी से हो गया। उन दोनों की आपस में कितनी ही बातें हो गई। अंत में हनुमान जी ने भीमसेन को वरदान मांगने का आग्रह किया, तब भीमसेन ने कहा कि “मेरे ऊपर आपकी कृपा कायम बनी रहे” इसके उत्तर में हनुमान जी ने कहा कि, हे वायु पुत्र! जब तुम तीर और शक्ति के आघात से व्याकुल बनी हुई दुश्मनों की सेना में गर्जना करोगे उस वक्त में मेरी गर्जना से इस सिंह गर्जना को बढ़ाकर बहुत ही बड़ी कर दूंगा। इस उपरांत में अर्जुन के रथ की ध्वजा ऊपर बैठकर ऐसी भयंकर गर्जना करता रहूंगा, जो शत्रुओं के प्राणों को हरण करने वाली बनेगी। और जिसेकि आपके शत्रुओ को सुगमता से मारा जाए। इस तरह जिनके रथ की ध्वजा ऊपर हनुमान जी विराजे हुए हैं, उनका विजय निश्चित है।
पाण्डव: : धृतराष्ट्र ने अपने प्रश्न में (पहले श्लोक) में पांडव: पद का प्रयोग किया था। इसलिए संजय धृतराष्ट्र को पांडवों की याद दिलाने के लिए बार-बार पाण्डव: शब्द का प्रयोग कर रहे हैं।
यह भी पढ़ें: कैसे पांडवों ने अपनी शंख ध्वनि से कौरवों के हृदय चीर दिए?
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते : पांडवों की सेना को देखकर दुर्योधन तो गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर चालाकि भरे वचन बोलता है, परंतु अर्जुन कौरवों की सेना को देखकर जो सद्गुरु हैं, अंतर्यामी है, मन बुद्धि वगैरा के प्रेरक हैं, ऐसे भगवान श्री कृष्ण को शूरवीरता, उत्साह और अपने कर्तव्य भरे वचन अगले श्लोक में कहते हैं।
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FAQs
भगवद गीता का आरंभ कैसे होता है?
भगवद गीता का आरंभ संजय द्वारा भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद के वर्णन से होता है।
दुर्योधन और अर्जुन की मानसिक स्थिति में क्या अंतर था?
दुर्योधन कौरवों की सेना को देखकर भयभीत था, जबकि अर्जुन ने निर्भयता और वीरता के साथ गांडीव धनुष उठा लिया।
हनुमान जी ने अर्जुन के रथ पर विराजमान होने का वरदान क्यों दिया?
हनुमान जी ने भीमसेन को वरदान दिया था कि वे अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान रहेंगे और उनकी गर्जना से शत्रुओं का मनोबल टूटेगा।
कपिध्वज का क्या अर्थ है?
कपिध्वज अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान हनुमान जी को संदर्भित करता है, जो उनके विजय का प्रतीक है।