
महाकुंभ 2025: आस्था और अर्थव्यवस्था का संगम
देश में प्रयागराज की संगम भूमि पर आयोजित महाकुंभ के पवित्र स्थान से सभी नागरिक जुड़ रहे हैं। देश में 144 वर्ष पश्चात आयोजित इस पवित्र तीर्थ आयोजन में अब तक कुछ ही दिनों के दौरान 50 करोड़ से अधिक नागरिक स्नान करके लाभान्वित हो चुके हैं। सनातन ईश्वरीय इस आयोजन में सभी राजनीतिक दल शामिल हो रहे हैं और पक्ष-विपक्ष के सभी नेता स्नान का लाभ ले रहे हैं।
12,000 करोड़ रुपये का निवेश
कुंभ के आयोजन को सुरक्षित व भव्य बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार ने 12,000 करोड़ रुपए का निवेश व खर्च किया है। बड़ी संख्या में सुरक्षा व सुविधाओं की व्यवस्था के साथ किसी प्रकार की घटना से बचने के लिए नागरिकों की सुविधाओं को ध्यान में रखकर पूर्ण व्यवस्था की गई है। हालांकि एक पटना में 30 लोगों की जान भी गई है, यह अवश्य ही चिंता का विषय है। लाखों यात्री स्नान के लिए कुंभ में पहुंच रहे हैं। सैकड़ों रेलगाड़ियों के फेरों की व्यवस्था की गई है तो उत्तर प्रदेश के सभी हवाई अड्डों पर भी यात्रियों की सक्रियता देखी जा सकती है।
अब तक का सबसे बड़ा मानवीय आयोजन
इस आयोजन को अब तक की सर्वाधिक मानव उपस्थिति वाला आयोजन कहा जा सकता है और यह विश्व का प्रमुख मानव संसाधन आयोजन भी है। कुंभ के आयोजन को लेकर व्यवस्था को उत्कृष्ट कहा जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार, उत्तर प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में इस आयोजन से तीन लाख करोड़ रुपए की वृद्धि होने की संभावना है। अर्थात, उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण लाभ होने की संभावना है।
व्यापार और रोजगार में तेजी: लाखों को मिला
अवसर
हजारों नागरिकों को प्रत्यक्ष रोजगार उपलब्ध हो रहा है, तो व्यवसायिक क्षेत्र को भी व्यापक गतिशीलता प्राप्त हो रही है। 50 करोड़ से अधिक लोग 45 दिन के इस आयोजन में कुंभ स्नान करने पहुंचेंगे और वर्तमान संख्या के आधार पर कहा जा सकता है कि यह आंकलन सही सिद्ध होने की संभावना है।
महाकुंभ और भारतीय त्यौहार: अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
देश में उपभोक्ता उत्पाद क्षेत्र के व्यवसाय व उद्योगों को दुर्गा पूजा, दीपावली, दशहरा, गणेश चतुर्थी, होली, ईद, वैलेंटाइन-डे व क्रिसमस के अवसर पर विशेष व्यावसायिक गतिशीलता का लाभ होता है। इसी प्रकार, जब कभी 12 वर्ष पश्चात पूर्ण कुंभ तथा 6 वर्ष पश्चात अर्ध कुंभ का आयोजन होता है, तब अर्थव्यवस्था को व्यापक स्तर पर लाभ होता है।
समुद्र मंथन से महाकुंभ तक: आस्था और समृद्धि का प्रतीक
समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष को हम सदैव स्मरण करते हैं और इसी का परिणाम संपदा की लक्ष्मी के रूप में हमें प्राप्त होता है। महाकुंभ वर्ष 2025 में 50 करोड़ से अधिक नागरिकों के आगमन की संभावना व्यक्त की गई है, जो अमेरिका व ब्रिटेन की संयुक्त आबादी से भी अधिक है।
विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण: टेंट सिटी और आध्यात्मिक पर्यटन
महाकुंभ के दौरान 15 लाख से अधिक विदेशी नागरिक भी स्नान के लिए आ रहे हैं। इसी संदर्भ में पर्यटन मंत्रालय ने कुंभ के लिए एक टेंट शहर का निर्माण किया है, जहां योग, पंचकर्म और आयुर्वेद की सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। वर्ष 2013 के कुंभ में भी 10 लाख विदेशी पर्यटकों ने हिस्सा लिया था।
ब्रांडिंग और विज्ञापन में रिकॉर्ड निवेश
देश की प्रमुख ब्रांड्स ने इस आयोजन के दौरान 3600 करोड़ रुपए की धनराशि विज्ञापन और व्यावसायिक प्रचार के लिए खर्च करने का निर्णय लिया है। इसी संदर्भ में आउटडोर विज्ञापन भी बड़े स्तर पर किया जा रहा है।
महाकुंभ: एक आर्थिक शक्ति केंद्र
इस आयोजन के दौरान अगर औसत यात्री 5000 रुपए खर्च करता है, तो कुल खर्च 2.25 लाख करोड़ रुपए के लगभग होगा। यदि आगंतुकों की संख्या में वृद्धि होती है, तो यह राशि 3 लाख करोड़ रुपए के स्तर को छू सकती है।
उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मिलेगा बड़ा लाभ
कुंभ का प्रभाव केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है। जो परिवार महाकुंभ में हिस्सा लेने के लिए अपने गृह क्षेत्र से प्रयागराज पहुंचते हैं, वे यात्रा से पहले ही अपने क्षेत्र में लगभग 2000 रुपए खर्च करते हैं। प्रयागराज और उसके पास स्थित हवाई अड्डों पर भी बड़े स्तर पर पर्यटन सुविधाओं का विस्तार हुआ है।
गंगा-जमुनी संस्कृति का संगम
महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक भी है। यह पर्व न केवल जाति-वर्ग के भेदभाव को मिटाने का कार्य कर रहा है, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी अमृत का कार्य कर रहा है। धर्म और जाति का भेद भुलाकर नागरिक इस पर्व के साथ जुड़कर देश की गंगा-जमुनी संस्कृति को साकार रूप देने का कार्य कर रहे हैं।
Also Read: महाकुंभ: आध्यात्मिकता , आस्था और एकता की महानगाथा