Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 15 16 महाभारत के शक्तिशाली शंखों का रहस्य

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 15 16

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 15 16

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय: |
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदर: || 15 ||

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर: |
नकुल: सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ || 16 ||

Bhagawat Geeta Chapter 1 Verse 15 16 Meaning

अर्थात अंतर्यामी भगवान श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य नाम का तथा धनंजय अर्जुन ने देवदत्त नाम का शंख बजाया, और भयंकर कर्मों करने वाले वृकोदर भीम ने पौंडरू नाम के  महाशंख को बजाया, कुंती पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनंत विजय नाम का शंख बजाया, तथा नकुल और सहदेव ने सुघोष और मणि पुष्पक नाम के शंख बजाएं।

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 15 16 Meaning in hindi

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो : सबके अंतर्यामी अर्थात सबके मन की बात जानने वाले साक्षात भगवान श्री कृष्ण पांडवों के पक्ष में खड़े रहकर, पाञ्चजन्य नाम के शंख को बजाया। भगवान ने पाञ्चजन्य नाम के शंख का रूप धारण करने वाले राक्षस को मारकर उसको शंख के रूप में स्वीकार किया था, इसलिए इस शंख का नाम पाञ्चजन्य पड़ा।

देवदत्तं धनञ्जय: : राजसूय यज्ञ के समय अर्जुन ने कितने ही राजा को जीतकर बहुत ही धन इकट्ठा किया था। इसलिए अर्जुन का नाम धनंजय पड़ गया! निवात, कवच वगैरा राक्षसों के सामने युद्ध करते समय इंद्र ने अर्जुन को देवदत्त नाम का शंख दिया था। इस शंख का आवाज जोर से होता था। जिसेकी शत्रुओं की सेना घबरा जाती थी। यह शंख अर्जुन ने बजाया।

पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदर: : हिडिंबासुर, बकासुर, जटासुर विजिट विगेरे राक्षसों को तथा कीचक जरासंघ, विगेरे बलवान वीरों को मारने के कारण भीमसेन का नाम भीमकर्मा पड़ गया। उनके पेट में जठराग्नि के अलावा “वृक” नाम का एक विशेष अग्नि था। जिससे बहुत ही अधिक भोजन पच जाता था। इस कारण से उनका नाम “वृकोदर” पड़ गया। ऐसे भीमकर्मा वृकोदर भीमसेन ने बहुत ही बड़े आकार वाले पौंडरू नाम का शंख बजाया।

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अर्जुन, भीम, और युधिष्ठिर यह तीनों कुंती के पुत्र थे। तथा नकुल और सहदेव यह दोनों मादारी के पुत्र थे। यह विभाग दर्शाने के लिए ही यहां युधिष्ठिर के लिए कुंती पुत्र विशेषण देने में आया है।

युधिष्ठिर को राजा कहने का तात्पर्य है कि, वनवास जाने से पहले युधिष्ठिर अपने आधे राज्य (इंद्रप्रस्थ) के राजा थे, और नियम अनुसार 12 वर्ष वनवास और 1 वर्ष गुप्त वास के बाद वह राजा बनने चाहिए थे। राजा विशेषण देकर संजय यह संकेत करना चाहते हैं कि, आगे जाकर धर्मराज युधिष्ठिर ही सकल पृथ्वी मंडल के राजा होंगे।

FAQs

पाञ्चजन्य शंख किसका था और इसका क्या महत्व है?

पाञ्चजन्य शंख भगवान श्रीकृष्ण का था। इसे उन्होंने एक राक्षस का वध करके प्राप्त किया था, इसलिए इसका नाम पाञ्चजन्य पड़ा। महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण ने इसे बजाकर युद्ध की शुरुआत की थी।

अर्जुन के शंख का क्या नाम था और उसे कैसे प्राप्त हुआ?

अर्जुन के शंख का नाम “देवदत्त” था। इसे उन्हें स्वयं इंद्र ने दिया था। इस शंख की ध्वनि इतनी तीव्र थी कि इससे शत्रु सेना भयभीत हो जाती थी।

भीम का शंख कौन-सा था और क्यों प्रसिद्ध था?

भीम का शंख “पौण्ड्र” था, जिसे महाशंख भी कहा जाता था। भीम ने अपने बलशाली व्यक्तित्व के कारण कई राक्षसों और योद्धाओं का वध किया, जिससे उनका नाम “भीमकर्मा” पड़ा।

युधिष्ठिर का शंख क्या था और उनका नाम कुंतीपुत्र क्यों कहा गया?

युधिष्ठिर का शंख “अनंत विजय” था। उन्हें विशेष रूप से “कुंतीपुत्र” कहा गया क्योंकि वह कुंती के पुत्र थे, जबकि नकुल और सहदेव माद्री के पुत्र थे।

नकुल और सहदेव ने कौन-से शंख बजाए थे?

नकुल ने “सुघोष” और सहदेव ने “मणिपुष्पक” नामक शंख बजाए थे। ये दोनों माद्री के पुत्र थे और अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध थे।

महाभारत में शंख बजाने का क्या महत्व था?

महाभारत युद्ध में शंख बजाना युद्ध के आरंभ का प्रतीक था। प्रत्येक योद्धा का शंख उसकी शक्ति और प्रतिष्ठा को दर्शाता था। शंख की ध्वनि से शत्रु दल भयभीत हो जाता था और युद्ध में आत्मबल बढ़ता था।

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