अर्जुन का मोह जागृत करने के पीछे भगवान श्री कृष्ण का क्या उद्देश्य था?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 24 25

सञ्जय उवाच |
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत |
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् || 24 ||

भीष्मद्रोणप्रमुखत: सर्वेषां च महीक्षिताम् |
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति || 25 ||

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 24 25 Meaning

अर्थात संजय बोले हे भरतवंशी राजन! निंद्रा विजय अर्जुन ने इस प्रकार(Shloka 23 में जो) कहा इसलिए, अंतर्यामी भगवान श्री कृष्ण ने दोनों सेना के मध्य भाग में पितामह भीष्म और आचार्य द्रोण के सामने तथा सारे राजाओं के सामने श्रेष्ठ रथ को खड़ा करके ऐसा कहा कि, हे पार्थ! यहां इकट्ठे हुए कुरुवंशियों को तू देख।

अर्जुन का मोह जागृत करने के पीछे भगवान श्री कृष्ण का क्या उद्देश्य था?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 24 25 Meaning in hindi

गुडाकेशेन : गुड़ा के शब्द के दो अर्थ होते हैं १) गुड़ा गोल को कहते हैं, और केस बाल को कहते हैं। जिनके सिर के बाल गोलाकार अर्थात गुच्छेदार हैं, उनका नाम गुडाकेश है। २) गुड़ाका निंद्रा को कहते हैं, और “ईश” स्वामी को कहते हैं, जो निंद्रा के स्वामी है, अर्थात निद्रा ले चाहे ना ले! ऐसा जिनका निद्रा ऊपर अधिकार है, उनका नाम गुडाकेश है। अर्जुन के बाल घट थे, और निंद्रा ऊपर उनका नियंत्रण था, इसीलिए उनको गुडाकेश कहा है।

एवमुक्तो : जो निंद्रा आलस के सुख का गुलाम नहीं बनता, और विषय भोग का दास नहीं बनता, केवल भगवान का ही दास (भक्त) बनता है, उन भक्त की बात भगवान सुनते हैं। मात्र सुनते ही नहीं, उनकी आज्ञा का पालन भी करते हैं। इसीलिए अपने मित्र भक्त अर्जुन की आज्ञा से भगवान श्री कृष्ण ने दोनों सेना के बीच में अर्जुन के रथ को खड़ा कर दिया।

हृषीकेश: : इंद्रियों को ऋषिक कहते हैं, जो इंद्रियों के स्वामी है उन्हें ऋषिकेश कहते हैं। कहने का तात्पर्य है कि, जो मन बुद्धि, इंद्रिया, वगैरा सब के प्रेरक हैं, और सबको आज्ञा देने वाले हैं। वही अंतर्यामी भगवान यहां अर्जुन की आज्ञा का पालन करने वाले बन गए हैं। यहां उनकी अर्जुन के ऊपर कितनी बड़ी कृपा है।

सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् : दोनों सेनन के बीच में जहां खाली जगह थी वहां भगवान ने अर्जुन का श्रेष्ठ रथ खड़ा कर दिया।

भीष्मद्रोणप्रमुखत: सर्वेषां च महीक्षिताम् : इस रथ को भी भगवान ने अद्भुत चतुराई से ऐसी जगह खड़ा रखा कि, जहां से अर्जुन को कुटुंब के संबंध वाले पितामह भीष्म विद्या के संबंध वाले आचार्य द्रोण और कौरव सेना के मुख्य मुख्य राजाओं सामने दिखाई दे।

यह भी पढ़ें : दुर्योधन ने गुरुद्वाराचार्य को पांडवों की सेना के बारे में क्या बताया? 

उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति : कुर पद में धृतराष्ट्र के पुत्र और पांडु के पुत्र यह दोनों समा जाते हैं। क्योंकि यह दोनों कुरुवंशियों के हैं। युद्ध में इकट्ठे हुए यह कुरुओं के वंशजो को देखो। ऐसा कहने का तात्पर्य है कि, कुरुवंशियों को देखकर अर्जुन के मन में यह भाव उत्पन्न हो जाए की, हम सब एक ही हैं! इस पक्ष के हो या उस पक्ष के हो, भले हो चाहे बुरे हो, सदाचारी हो चाहे दुराचारी हो, परंतु है तो सभी अपने ही कुटुंबि जन! अर्जुन का मोह जागृत करने के पीछे भगवान श्री कृष्ण का क्या उद्देश्य था? इस कारण से अर्जुन के मन में छुपा हुआ कुटुंब की ममता वाला मोह जागृत हो जाए, और मोह जागृत होने से अर्जुन जिज्ञासु बन जाए, जिसेकि अर्जुन को निमित्त बनाकर भावी कलयुग के जीवों के कल्याण के लिए गीता का महान उपदेश दिया जा सके, इस भाव से भगवान ने यहां पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति कहां है। नहीं तो भगवान पश्यैतान धृतराष्ट्रण समानिति ऐसा भी कह सकते थे, परंतु ऐसा कहने से अर्जुन के मन में युद्ध करने का भाव आजाता। जिसेकी गीता के प्राकट्य का अवसर ही ना आता, और अर्जुन के मन में छुपा हुआ कुटुंब का मोह भी दूर ना होता, जिसे दूर करना भगवान अपनी जिम्मेदारी मानते हैं। जिस तरह शरीर में कोई फोड़ा हो जाए तो वैद्य पहले उसे पकाने की चेष्टा करते हैं, और जब वह पक जाए तब उसको चीरके साफ कर देते हैं। वैसे ही भगवान भक्त के मन में छुपा हुऐ मोह को प्रथम जागृत करके फिर उसे दूर करते हैं। यहां भी भगवान अर्जुन के मन में छुपा हुऐ मोह को जागृत कर रहे हैं, जिसका आगे उपदेश देकर नाश कर देंगे।

हमारे Whatsapp चैनल पर जुड़ने के लिए इस इमेज पर क्लिक करे

banner

कौटुंबिक स्नेह और भगवत प्रेम यह दोनों में बड़ा ही तफावत है, कुटुंब में ममता वाला स्नेहा होता है, तब कुटुंब के अवगुण तरफ नजर नहीं जाती! परंतु यह मेरे हैं ऐसा भाव रहता है। वैसे ही भगवान का भक्त में खास स्नेह हो जाता है, तब भक्त के अवगुण तरफ भगवान की नजर नहीं पड़ती, परंतु यह मेरा ही है। ऐसा भाव रहता है। कौटुंबिक स्नेह में क्रिया तथा पदार्थ (शरीर वगैरह) का और भगवत प्रेम में भाव का प्रधान होता है। कौटुंबिक स्नेह में अंधेरा और भगवत प्रेम में प्रकाश रहता है। कुटुंबिक स्नेह में मनुष्य कर्तव्य च्युत हो जाता है। और भगवत प्रेम में तल्लीनता के कारण कर्तव्य के पालन का विस्मरण तो हो सकता है, परंतु भक्त कभी भी कर्तव्य च्युत नहीं होता। कौटुंबिक स्नेह में कुटुंब का और भगवत प्रेम में भगवान का प्राधान्य होता है।

इस श्लोक में भगवान ने अर्जुन को कुरुवंशियों को देखने के लिए कहा। उसके बाद क्या हुआ?? इसका वर्णन संजय अगले श्लोक में करते हैं।

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 24 25 Meaning ( Video )

FAQs

गुडाकेश का क्या अर्थ है?

गुडाकेश का अर्थ दो प्रकार से होता है – (1) जिनके बाल गुच्छेदार होते हैं, और (2) जो नींद के स्वामी होते हैं। अर्जुन को इसलिए गुडाकेश कहा गया।

हृषीकेश किसे कहा जाता है?

इंद्रियों के स्वामी को हृषीकेश कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण को यह नाम इसलिए मिला क्योंकि वे सभी इंद्रियों के प्रेरक हैं।

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का रथ कहां खड़ा किया?

उन्होंने दोनों सेनाओं के बीच में अर्जुन का रथ खड़ा किया, ताकि अर्जुन अपने संबंधियों को स्पष्ट रूप से देख सके।

कौटुंबिक में क्या अंतर है?

कौटुंबिक स्नेह में ममता होती है और व्यक्ति अवगुणों को नजरअंदाज करता है, जबकि भगवत प्रेम में भगवान के प्रति समर्पण और प्रकाश का अनुभव होता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top