क्या कुलधर्म और जातिधर्म का नाश मनुष्य को नरक की ओर ले जाता है?

दोषैरेतै: कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकै: |
उत्साद्यन्ते जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वता: || 43 ||

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन |
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम || 44||

Shrimad Bhagavad Geeta Chapter 1 Shloka 43, 44 Meaning

अर्थात ऐसे वर्णसंकर उत्पन्न करने वाले पाप से कुल-हत्यारों के सदा से चलते आये सनातन कुलधर्म और जाति-धर्म नाश पामेंगे। हे जनार्दन! हमने सुना है कि जिनके कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं वे लम्बे समय तक नरक में रहते हैं।

क्या कुलधर्म और जातिधर्म का नाश मनुष्य को नरक की ओर ले जाता है?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 43 44 Meaning in hindi

दोषैरेतै: कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकै: उत्साद्यन्ते जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वता:

जब युद्ध में एक कुल नष्ट हो जाता है, तो उस कुल के साथ जुड़े कुल धर्म भी नष्ट हो जाते हैं। कुल धर्म के नाश से कुल में अधर्म की वृद्धि होती है। अनैतिकता बढ़ने से महिलाएं भ्रष्ट हो जाती हैं। जब महिलाएं प्रदूषित होती हैं तो वर्णसंकर संतान जन्म लेते हैं। इस प्रकार इन वर्णसंकर संतान को उत्पन्न करने वाले दोषों से कुल का नाश करने वालों के जाति धर्म (वर्ण धर्म) नष्ट हो जाते हैं।

गोत्र धर्म और जाति धर्म क्या हैं? 

एक ही जाति के अंतर्गत एक कुल की अपनी अलग परंपराएं, अलग सीमाएं और अलग प्रथाएं होती हैं, जिन्हें उस कुल का ‘कुल धर्म’ कहा जाता है। एक ही जाती के सभी कुल के समुदाय को लक्ष्य में रखकर जिसे धर्म कहने में आता है, उन सबको ‘जाति धर्म’ कहा जाता है, अर्थात् ‘वर्ण धर्म’, जो सामान्य धर्म हैं तथा शास्त्रों द्वारा निर्धारित हैं, ‘धर्म’ कहलाते हैं। यदि इन कुल और जाति धर्मों का पालन नहीं किया गया तो वे धर्म नष्ट हो जायेंगे।

यह भी पढ़ें : कुरुक्षेत्र में अर्जुन को क्यों नहीं दिख रहा था युद्ध में कोई लाभ?

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम :

क्या कुलधर्म और जातिधर्म का नाश मनुष्य को नरक की ओर ले जाता है? ईश्वर ने मनुष्य को विवेक दिया है, नये कार्य करने का अधिकार दिया है। इस कारण कर्म करना या न करना, अच्छा या बुरा करना, स्वतंत्र है। इसलिए उसे सदैव विवेक और विचारपूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। लेकिन सुखों के लालच में लोग अपने विवेक की अवहेलना कर, राग-द्वेष के वशीभूत हो जाते हैं, जिससे उनके कार्य शास्त्रों और कुल की मर्यादाओं के विरुद्ध होने लगते हैं। परिणामस्वरूप, इस संसार में उनकी निंदा की जाती है, उन्हें अपमानित किया जाता है, तथा तिरस्कृत किया जाता है, और अगले संसार में उन्हें घृणित नरकों में भेजा जाता है। अपने पापों के कारण उन्हें लम्बे समय तक नरक में कष्ट भोगना पड़ता है। हम वृद्ध और अधिक पारंपरिक गुरुओं से यह बात सुनते आ रहे हैं।

युद्ध से होने वाले अनर्थ परंपरा के वर्णन से अर्जुन के खुद के मन पर क्या असर पड़ रही है? इसका वर्णन हम अगले श्लोक में देखेंगे।

FAQs

कुल धर्म और जाति धर्म में क्या अंतर है?

कुल धर्म एक विशेष कुल की परंपराएं और मर्यादाएं होती हैं, जबकि जाति धर्म (वर्ण धर्म) व्यापक समाज के लिए शास्त्रों द्वारा निर्धारित सामान्य नियम होते हैं।

क्या मनुष्य अपने कर्मों के लिए स्वतंत्र है?

हाँ, गीता के अनुसार मनुष्य को विवेक और कर्म का अधिकार मिला है। लेकिन यदि वह राग-द्वेष में बहकर अधर्म करता है, तो उसे निंदा, तिरस्कार और नरक भोगना पड़ता है।

भगवद गीता में वर्णसंकर संतानों को लेकर क्या चेतावनी दी गई है?

शास्त्रों में कहा गया है कि वर्णसंकर संतानों के कारण कुल और जाति धर्म नष्ट होते हैं, और जिनका कुलधर्म नष्ट हो जाता है, उन्हें लम्बे समय तक नरक में वास करना पड़ता है।

क्या भगवद गीता केवल हिंदुओं के लिए है?

नहीं, भगवद गीता सार्वभौमिक ज्ञान है जो हर व्यक्ति को आत्म-ज्ञान, शांति और जीवन की दिशा देने में सहायक है।

भगवद गीता का मुख्य संदेश क्या है?

भगवद गीता का मुख्य संदेश है — कर्तव्य का पालन करते हुए निष्काम भाव से कर्म करो और फल की चिंता मत करो।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top