कुरुक्षेत्र में अर्जुन को क्यों नहीं दिख रहा था युद्ध में कोई लाभ?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 31

निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव |
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे || 31 ||

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 31 Meaning

अर्थात अर्जुन श्री कृष्ण जी से कहते हैं, हे केशव! में लक्षणों, शकुनों को भी विपरीत देख रहा हूं और युद्ध में स्वजनों को मार कर श्रेय (लाभ) भी नहीं देख रहा।

कुरुक्षेत्र में अर्जुन को क्यों नहीं दिख रहा था युद्ध में कोई लाभ?

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 31 Meaning in hindi

निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव : हे केशव! शकुन को भी विपरीत ही देख रहा हूं। तात्पर्य है कि कोई भी कार्य की शुरुआत में मन में जितना ज्यादा उत्साह (हर्ष) होता है, उतना ही उत्साह वह कार्य को सिद्धी प्राप्त करने वाला बनता है। परंतु कार्यों के आरंभ में ही उत्साह भंग हो गया है, मन में अयोग्य संकल्प विकल्प उठ रहे हैं, तो यह कार्य का परिणाम अच्छा नहीं होता। इस भाव से अर्जुन का रहे हैं कि अभी मेरे शरीर के अवयव ढीले पड़ रहे हैं, मैं कांप रहा हूं, मुंह सूख रहा है, वगैरह जो लक्षण दिख रहे हैं वह व्यक्तिगत शकुनों भी योग्य नहीं हो रहे हैं। इसके अलावा अवकाश में से उल्कापत होना, अयोग्य समय पर ग्रहण होना, भूकंप होना,जानवरों और पक्षियों की भयानक आवाज़ें,चंद्रमा के काले दाग न दिखना, बादल में से रक्त की वर्षा होना, विगिरे जो शकुनों पहले हो चुके हैं, वह भी कुछ अच्छे नहीं हैं, इस तरह इस हाल में और पहले बनी हुए घटना है, उस पर मैं नजर डालता हूं, तो मुझे यह दोनों शकुनों विपरीत अर्थात भावी अनिष्ट के ही सूचक दिख रहे हैं।

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न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे : युद्ध में अपने ही कुटुंब को मारने से हमें लाभ होगा, ऐसी बात भी नहीं। यह युद्ध के फल स्वरुप हमें इस लोक और परलोक दोनों में कुछ अच्छा होगा ऐसा दिख नहीं रहा। क्योंकि जो लोग अपने ही कुल का नाश करते हैं, वह अत्यंत पापी होते हैं! इसलिए कुल का नाश करने से हमें पाप ही लगेगा। जिसके परिणाम स्वरुप हमें नर्क में जाना पड़ेगा।

संक्षिप्त में अर्जुन यह कहना चाहते हैं कि, मैं शकुनों देखूं अथवा खुद विचार करु, दोनों तरह से युद्ध का आरंभ और उसका परिणाम हमारे लिए, वही संसार मात्र के लिए लाभकारी मुझे नहीं दिख रहा।

जिसमें शुभ शकुन दिखते नहीं और श्रेय भी दिखता नहीं, ऐसे अनिष्ट करने वाला विजय प्राप्त करने की अनिच्छा अर्जुन अगले श्लोक में प्रकट करते हैं।

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Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 31 Meaning ( Video )

FAQs

अर्जुन के मन में उत्साह क्यों नहीं है?

कार्य के आरंभ में जो उत्साह होना चाहिए, वह अर्जुन के मन में नहीं है। उन्हें मन में असमंजस और अयोग्य संकल्प उठते दिख रहे हैं, जिससे वे परिणाम को शुभ नहीं मानते।

अर्जुन को कौन-कौन से अशुभ शकुन दिख रहे हैं?

उल्कापात, भूकंप, ग्रहण, जानवरों की भयानक आवाजें, चंद्रमा के दाग गायब होना, बादलों से रक्त वर्षा जैसे अशुभ शकुन अर्जुन देख रहे हैं।

अर्जुन को कुल का नाश क्यों गलत लग रहा है?

अर्जुन मानते हैं कि अपने ही कुल का विनाश करना पाप है, और इससे उन्हें पाप और नर्क की प्राप्ति होगी।

कुरुक्षेत्र में अर्जुन को क्यों नहीं दिख रहा था युद्ध में कोई लाभ?

अर्जुन को युद्ध में न शुभ शकुन दिख रहे हैं, न कोई श्रेय, इसलिए वे यह सोच रहे हैं कि ऐसी विजय भी अनिष्टकारी है और इससे बेहतर है युद्ध न करना।

What does bhagavad gita say about non veg?

The Bhagavad Gita does not directly forbid non-vegetarian food but promotes sattvic (pure) foods that enhance clarity, health, and spiritual growth. Meat is generally considered rajasic or tamasic, which can increase restlessness or dullness. For a yogic and spiritual lifestyle, the Gita encourages foods that are fresh, natural, and promote peace of mind.

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