
आखाड़ो की स्थापना का इतिहास
पुरानी भारतीय संस्कृति में, अखाड़ा परंपरा की शुरुआत साधुओं और तपस्वियों ने ध्यान और साधना के लिए संगठित रूप से ये केंद्र बनाने से हुई है। महाभारत और रामायण काल से अखाड़ा परंपरा जुड़ी हुई है, जब धर्म, तपस्या और साधना के लिए समर्पित समूहों का अस्तित्व था। इन अखाड़ों का परंपरागत उद्देश्य साधुओं को एकजुट करना था और उन्हें तपस्या, धर्म और योग के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाने के लिए प्रेरित करना था। यह भी कहा जाता है कि शंकराचार्य ने अखाड़ा व्यवस्था की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य पुरातन धर्म को पुनर्जीवित करना और उसे एक संगठित रूप में प्रस्तुत करना था।
13 प्रमुख अखाड़े
भारत में 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जो कुंभ मेला जैसे बड़े धार्मिक उत्सवों में बहुत महत्वपूर्ण हैं। प्रत्येक अखाड़े का अपना अलग इतिहास, परंपरा और ईष्ट देवता है, और उनके सदस्य तपस्या करते हैं, सेवा करते हैं और समाज की सेवा करते हैं। इनमें से कुछ शैव सन्यासियों के हैं, जबकि कुछ वैष्णव और अन्य धर्मों के हैं। कुंभ में कुछ समय पहले से किन्नर अखाड़ा भी शामिल होने लगा है, जिसके प्रमुख स्वामी लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी हैं। इसमें समाज के 13 प्रमुख अखाड़ों का विवरण है।
1. जूना अखाड़ा:
ऐसा कहा जाता है कि यह अखाड़ा 1145 में उत्तराखण्ड के कर्णप्रयाग में बनाया गया था। यह भैरव अखाड़ा भी कहलाता है। इनके आराध्य देव दत्तात्रेय हैं। माना जाता है कि वाराणसी के हनुमान घाट इसका केंद्र है। इन्हें हरिद्वार में मायादेवी मंदिर के निकट आश्रम है। इस अखाड़े में रहने वाले नागा साधु कहलाते हैं और इसे वर्तमान में साधू समाज का सबसे बड़ा अखाड़ा माना जाता है।
2.निरंजनी अखाड़ा
826 ईस्वी में गुजरात के मांडवी में यह अखाड़ा बनाया गया था। कार्तिकस्वामी भगवान शंकर का पुत्र है। इन्हें दिगम्बर, साधु, महन्त और महामंडलेश्वर कहा जाता है। इन्हें इलाहाबाद, उज्जैन, हरिद्वार, तिम्बकेश्वर और उदयपुर में शाखाएं हैं।
3. अटल अखाड़ा
यह कहा जाता है कि यह अखाड़ा गोंडवाना क्षेत्र में 569 ईस्वी में बनाया गया था। गणेश उनका देव है। यह सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक है। पाटन इसकी मुख्य पीठ है, लेकिन कनखल, हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन और प्रत्यंबकेश्वर में भी आश्रम हैं।
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4. महानिर्वाण अखाड़ा
यह अखाड़ा लगभग 681 ईस्वी में बनाया गया था। यह बिहार-झारखंड के बैजनाथ धाम में बना था, जबकि कुछ लोग इसका जन्म स्थान हरिद्वार में नील धारा के पास मानते हैं। कपिल महामुनि उनके ईश्वर हैं। इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन, त्रिंबकेश्वर, ओंकारेश्वर और कनखल में इनकी शाखाएं हैं।।
5. आह्वान अखाड़ा
यह अखाड़ा 646 में बनाया गया था और 1603 में फिर से बनाया गया था। इनके देवताओं में श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन शामिल हैं। इस अखाड़े का केंद्र काशी है। इसका आश्रम भी ऋषिकेश में है।
6. आनंद अखाड़ा
855 ईस्वी में मध्य प्रदेश के बेरार में यह अखाड़ा बनाया गया था। वाराणसी इसका मुख्यालय है। यह भी इलाहाबाद, हरिद्वार और उज्जैन में है।
7. नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा
गोरखपंथियों का कहना है कि ईस्वी 866 में अहिल्या-गोदावरी संगम पर यह अखाड़ा बनाया गया था। यह पीर शिवनाथजी ने बनाया था। इनमें बारह पंथ हैं और उनका प्रमुख देवता गोरखनाथ है। योगिनी कौल संप्रदाय की र्त्यंबकेश्वर शाखा र्त्यंबकंमठिका कहलाती है।
8. पंचाग्नि अखाड़ा
इस अखाड़े को लगता है कि 1136 में बनाया गया था। इनका केंद्र काशी है और उनके इष्ट देव गायत्री हैं। इनमें चारों धर्मों के शंकराचार्य, ब्रहमचारी, साधु और महामंडलेश्वर शामिल हैं। इनकी पारंपरिक शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और तिम्बकेश्वर में हैं।
9. वैष्णव अखाड़ा
1595 में दारागंज में श्री मध्यमुरारी में बालानंद गैर शैव अखाड़ा की स्थापना हुई। धीरे-धीरे इनमें तीन संप्रदाय बने: खाकी, निर्वाणी और निर्मोही। र्त्यंबकेश्वर में मारुति मंदिर के पास उनका अखाड़ा था। 1848 तक, शाही स्नान केवल तिम्बकेश्वर में हुआ करता था। 1848 में, वैष्णवों और शैवों में पहले स्नान कौन करे, इस पर विवाद हुआ। श्रीमंत पेशवाजी ने इस विवाद को हल किया। उस समय र्त्यंबकेश्वर के पास चक्रतीर्था पर स्नान किया।
10. उदासीन नया अखाड़ा
इसे बड़े उदासीन अखाड़े के कुछ सांधुओं ने अलग होकर बनाया। इनका जन्म मंहत सुधीरदासजी ने किया था। यह प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और तिम्बकेश्वर में अपनी शाखाएं रखता है।
11. उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा
इस संप्रदाय की स्थापना करने वाले श्री चंद्रआचार्य उदासीन हैं। इनमें सांप्रदायिक मतभेद हैं। इनमें अधिकांश उदासीन साधु, मंहत व महामंडलेश्वर हैं। उन्हें प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, त्रिंबकेश्वर, भदैनी, कनखल, साहेबगंज, मुलतान, नेपाल और मद्रास में शाखाएं हैं।
निर्मल पंचायती अखाड़ा
यह अखाड़ा 1784 में बनाया गया था। 1784 में श्री दुर्गासिंह महाराज ने हरिद्वार कुंभ मेले में एक बड़ी बैठक में इसकी स्थापना की, जहां लोगों ने विचारों को साझा किया। श्री गुरुग्रन्थ साहिब उनकी सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है। इनमें कई सांप्रदायिक साधु, मंहत और महामंडलेश्वर शामिल हैं। इन्हें प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और तिम्बकेश्वर में शाखाएं हैं।
12. किन्नर अखाड़ा
भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने के लिए इस अखाड़े की स्थापना की गई है। 2015 में आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने इसकी स्थापना की। किन्नर अखाड़ा ट्रांसजेंडर समुदाय को धार्मिक अधिकार देने की कोशिश करता है और उन्हें समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने का भी प्रयास करता है। इसके माध्यम से किन्नर समुदाय अपनी उपस्थिति और योगदान को सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक स्तर पर दिखाने की कोशिश करता है।
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13. निर्मोही अखाड़ा
1720 में रामानंदाचार्य ने निर्मोही अखाड़ा बनाया था। इस अखाड़े के मंदिरों और मठों को उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और बिहार में पाया जा सकता है। पुराने समय में इसके अनुयायियों को तीरंदाजी और तलवारबाजी भी सिखाया गया था।
कुंभ अखाड़ों की भूमिका:
भारत में अखाड़े धार्मिक मूल्यों का प्रतीक हैं, जो समाज में सद्भाव और सकारात्मक ऊर्जा फैलाते हैं। ये साधु अपनी तपस्या और साधना के माध्यम से समाज को जागरूक करते हैं और भारतीय संस्कृति के मूल्यों को बचाते हैं, इसलिए कुम्भ मेला में उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। अखाड़ा परिषद के सुझावों के अनुसार, चारों कुम्भ स्थलों का प्रशासन कुम्भ की सभी व्यवस्थाएं संभालता है।
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